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मानवता मंदिर पर परम दयाल फकीर चंद जी महाराज द्वारा लहराया गया यह झंडा मानवता का प्रतीक है. यह झंडा संसार में पहली बार आया है और मानव जाति के लिए मानवता की शिक्षा लाया है. इस झंडे पर कबीर, नानक और राधास्वामी दयाल के नाम लिखे हुये हैं जिसका अर्थ यह है कि सन्तमत की शिक्षा मानवता का राज्य लाने के लिये ज़रूरी है. इसके तीन रंग हैं जो भारत के राष्ट्रीय झंडे के हैं और उस पर अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू और पंजाबी में, ‘मनुष्य बनो’, ‘इन्सान बनो’, और ‘मनुक्ख बनो’ लिखा हुआ है. यह झंडा मानवता का सन्देश देता हुआ सब धर्म छोड़ कर केवल मानव धर्म का सन्देश देता है.

यह झंडा सब प्राणीमात्र का है, मानवता का है. यह हमें याद कराता है कि तमाम प्राणीमात्र किसी भी देश के हों, कोई भी भाषा हो या वेशभूषा हो, सभी एक मालिक की सन्तान हैं. एक ही तत्त्व से सृष्टि पैदा होती है और ये शब्द, प्रकाश, आकाश, अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी सूरज, चाँद, सितारे, वर्ष, महीने, दिन बने हुये हैं और वह मालिक आप ही इन्सान के अन्दर साक्षी बन कर आया हुआ है और सब सृष्टि का खेल देखता है. अगर वह न हो, तो सब सृष्टि बेकार है. इसलिये हर इन्सान के अन्दर वह मौजूद है. हम उसी से निकाल कर आये हैं और अंत में उसी में समा जायेंगे. वही हमारा पिता है. हम सब उसी की सन्तान हैं.

झंडा तीन रंग का बना हुआ है, इसी तरह इन्सान का जीवन सच्चिदानंद स्वरूप है. सत् शरीर को, चित्त मन को और आनन्द आत्मा को कहते हैं. शरीर, मन और आत्मा की सम अवस्था की जीवन कहा गया है. हमारे भारत के झंडे के तीन रंग हैं.

सत-चित्त-आनंद या ब्रह्म, जीव और माया के ख़्याल से हम सब इन्सान हैं, एक हैं. इसीलिये कहा गया है कि सब इन्सान इस झंडे के नीचे आयें. दूसरे तीन लोक भी शरीर, मन और आत्मा ही हैं. जो इन तीनों को धारण कर के इनकी सम्मिलित दशा यानी इन्सानी रूप में आए हुए हैं वे इस मानवता के झंडे के नीचे आयेंगे या मानवता के नियमों पर चलेंगे, तो सांसारिक जीवन सुखमय बन जायेगा.

मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।
प्राणी मात्र का एक निशान, मानवता की शान गुमान,
इक मालिक की सब संतान, जुग जुग उड़ ऊँचे असमान,
तू प्राण है सब का, तन मन आत्मराम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

वो मालिक अत्यंत महान, पा न सका कोई उसका थान,
तुझ को बाँटा टुकड़े आन, मानव की मानव ले जान,
अंधकार के बस में, बन गए धर्म तमाम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

जब देखा तेरा ये हाल, माँ वसुंधरा हुई बेहाल,
दाया उमड़ी पुरुष अकाल, प्रगटे जग में परम दयाल,
भूतल गाड़ा तुम को, मानवता के नाम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

ऐ मानव तू मानव बन, हिन्दू मुसलमान न बन,
मालिक बस रहा सब तन, जन की सेवा करे सो जन,
निज परिवार की सेवा, भक्ति है निष्काम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

सच्चरित्रता के मार्ग आ, आशावादी ख्याल बना,
सहित विवेक धर्म कमा, फिर मालिक को सकेगा पा,
जी और जाने दे, तू उड़ता दे पैगाम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

रंग तीन से शोभावान, ब्रह्म, जीव और माया जान,
सत चित आनन्द की खान, भारतवर्ष का यही निशान,
नीचे इसके आवें, जीव त्रिलोकी धाम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

चमकें सूरज तीन कमाल, कबीर साहिब नानक कृपाल,
राधास्वामी शिव दयाल, मानवता का दिया ख्याल,
द्यौ लोक उड़ाना तुम को, ये परम दयाल का काम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

युग युगांतर झुलता रह, मानव सेवा करता रह,
राग एकता गाता रह, दया दयाल की पाता रह,
सुख पावें संसारी, दिन दिन प्रातः शाम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

मानवता के संत ने आ, इन्सान बनो ! आदेश दिया,
जीवन की आधार शिला, रोग सोग की एक दवा,
संदेश मेरा पहुँचा दो, देश देशांतर नगर ग्राम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

अद्‌भुत झंडा जग में आया, 'इन्सान बनो' इस नाम धराया,
जग कल्याण का रूप रचाया, इसे संत सत्गुरू वक़्त बनाया,
आओ भाई बहनों, सब करें इसे प्रणाम ।
मानवता के झंडे, कर जोड़ करें प्रणाम ।

( लेखक : भगत मुंशीराम )

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